जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
आलेख
प्रतिनिधि निबंधों व समालोचनाओं का संकलन आलेख, लेख और निबंध.

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लिखी कागद कारे किए - प्रभाष जोशी

सिडनी से ही ब्रिसबेन गया था और भारत को आस्ट्रेलिया से एक रन से हारते देखकर लौट आया था। सिडनी में भारत का मैच पाकिस्तान से होना था और फिर क्रिकेट के दो सबसे पुराने प्रतिद्वन्द्वियों इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया का मुकाबला था। यानी काम के दिन दो थे और सिडनी में टिकना सात दिन था।
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मैं कहानी कैसे लिखता हूँ - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

मेरे किस्से प्राय: किसी-न-किसी प्रेरणा अथवा अनुभव पर आधारित होते हैं, उसमें मैं नाटक का रंग भरने की कोशिश करता हूँ मगर घटना-मात्र का वर्णन करने के लिए मैं कहानियाँ नहीं लिखता। मैं उसमें किसी दार्शनिक और भावनात्मक सत्य को प्रकट करना चाहता हूँ। जब तक इस प्रकार का कोई आधार नहीं मिलता, मेरी कलम ही नहीं उठती। आधार मिल जाने पर मैं पात्रों का निर्माण करता हूँ। कई बार इतिहास के अध्ययन से भी प्लाट मिल जाते हैं लेकिन कोई घटना कहानी नहीं होती, जब तक कि वह किसी मनोवैज्ञानिक सत्य को व्यक्त न करे।
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सुब्रह्मण्य भारती : बीसवीं सदी के महान तमिल कवि - डॉ. एस मुथुकुमार

देश के स्वाधीनता संग्राम में जहाँ कुछ देशभक्तों ने अपने तेजस्वी भाषणों, नारों से विदेशी सत्ता का दिल दहलाया, वहीं कुछ ऐसे साहित्यकार भी थे जिन्होंने अपने काव्य-बाणों से विपक्षी को आहत किया। हिंदी में यदि ‘मैथिलीशरण गुप्त‘, ‘सोहनलाल द्विवेदी‘, ‘सुभद्राकुमारी चौहान‘, ‘रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ आदि ने अपनी काव्य-रचनाओं से भारतीय नवयुवकों के मन में देश-प्रेम के भाव भरे तो देश की अन्य भाषाओं में भी ऐसे देशभक्त कवि, साहित्यकार हुए जिनकी रचनाओं ने अँग्रेजी राज्य की जड़ें हिला दीं। तमिल भाषा के ऐसे ही कवि थे ‘सुब्रह्मण्य भारती‘।
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हिंदी की व्यंग्य प्रधान ग़ज़ले - डॉ.जियाउर रहमान जाफरी

व्यंग्य साहित्य की वह विधा है जो पाठकों के लिए तो हमेशा रुचिकर रही लेकिन आलोचकों ने इसे स्थापित करने में कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अक्सर व्यंग्य को हास्य के साथ जोड़ दिया जाता है जबकि हास्य और व्यंग्य दोनों अलग-अलग प्रकार की विधा है। व्यंग्य में गंभीरता भी होती है पर हास्य अक्सर हास्यास्पद बन जाता है।
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